मेरे गाँव को समर्पित कुछ पंक्तियाँ
जहां पंख पसारे मोर सभी
मद मस्त मगन हो घूम रहे
जहां नंगे पांव सभी बच्चे
बारिश में सड़क पर घूम रहे
संध्या की पावन वेला पर
संगीत सुनाई देता है
आंगन में कोयल का भी
मधुरिम गीत सुनाई देता है
दरवाजों पर अब भी पत्तों की
झाल लगायी जाती है
रातों में चौराहों पर भी
चौपाल लगायी जाती है
सावन के महीने में अब भी
बरसात सुहानी होती है
उस गांव की मिट्टी की खुशबू
न कभी पुरानी होती है
उस मिट्टी की खुशबू के संग मैं हवा सा बहने वाला हूं
गर्व से कहता हूं मैं अपने गांव का रहने वाला हूं।👏🏼🙏🏼🌱
~~~सुखदेव बैनाड़ा ~~~
September 19, 2020 at 12:00 AM
बहुत ही शानदार कविता👌👌😊